देश की संसद में इन दिनों मानसून सत्र जारी है। इस सत्र के दौरान विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार और विपक्ष के बीच गहन बहस हो रही है। इसी बीच राज्यसभा में एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है, जो भारतीय नागरिकता को लेकर है। विदेश मंत्रालय की ओर से संसद में प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के अनुसार, साल 2024 में अब तक 2,06,378 भारतीयों ने अपनी नागरिकता त्याग दी है। यह आंकड़ा भारत के बढ़ते वैश्विक संपर्क और प्रवासन प्रवृत्तियों की ओर संकेत करता है।
राज्यसभा में पूछा गया सवाल
राज्यसभा में एक सांसद द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में विदेश मंत्रालय ने यह जानकारी दी। सवाल यह था कि साल 2024 में अब तक कितने भारतीयों ने देश की नागरिकता छोड़ी है और किन देशों को उन्होंने अपनाया है। जवाब में मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि जनवरी से लेकर जुलाई 2024 तक कुल 2 लाख से अधिक भारतीयों ने भारतीय नागरिकता छोड़ी है।
पिछले वर्षों की तुलना
विदेश मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या पिछले सालों की तुलना में थोड़ी कम हुई है:
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2022: 2,25,620 भारतीयों ने नागरिकता छोड़ी
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2023: 2,16,219 नागरिकता छोड़ने के मामले
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2024 (अब तक): 2,06,378 लोगों ने छोड़ी नागरिकता
हालांकि 2024 का आंकड़ा अभी तक का है और साल के अंत तक यह संख्या और बढ़ सकती है। फिर भी, यह गिरावट भारत सरकार की प्रवासी भारतीयों के लिए बनाई गई नई नीतियों और आर्थिक सुधारों की सफलता का एक संकेत माना जा सकता है।
नागरिकता क्यों छोड़ते हैं भारतीय?
भारतीय नागरिक अपनी नागरिकता कई कारणों से छोड़ते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
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बेहतर जीवनशैली और अवसर: अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप जैसे देशों में नागरिकों को बेहतर सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और कर व्यवस्था मिलती है।
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नागरिकता नियम: भारत में दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं है, जबकि कई देश प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करते हैं।
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नौकरी और शिक्षा के अवसर: आईटी, हेल्थकेयर, फाइनेंस और रिसर्च के क्षेत्र में विदेशों में अधिक अवसर और पैकेज मिलने की संभावना होती है।
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परिवारिक पुनर्मिलन: कई लोग अपने परिवार के साथ रहने या स्थायी निवास के लिए नागरिकता त्यागते हैं।
किन देशों को चुन रहे हैं भारतीय?
हाल के वर्षों में जिन देशों को भारतीय नागरिकों ने अपनी नई नागरिकता के रूप में अपनाया है, उनमें प्रमुख हैं:
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अमेरिका
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कनाडा
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ऑस्ट्रेलिया
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यूके (ब्रिटेन)
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न्यूज़ीलैंड
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जर्मनी
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सिंगापुर
इन देशों में उच्च जीवन स्तर, प्रवासियों के प्रति उदार नीतियां और तकनीकी क्षेत्र में अवसरों की भरमार है। इसी कारण भारतीयों का इन देशों की ओर झुकाव बढ़ा है।
सरकार की प्रतिक्रिया और रणनीति
सरकार इस स्थिति को लेकर सजग है। मोदी सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में "विभिन्न वीजा और निवेश योजनाओं", "मेक इन इंडिया", "स्टार्टअप इंडिया", "प्रवासी भारतीय दिवस" जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से प्रवासी भारतीयों को जोड़ने और भारत में अवसर उत्पन्न करने की कोशिश की है।
विदेश मंत्रालय का मानना है कि नागरिकता छोड़ने वालों में अधिकांश वे लोग हैं जो पहले से विदेशों में लंबे समय से रह रहे थे और जिनके पास वहां की स्थायी नागरिकता पहले से थी।
निष्कर्ष
भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या एक चिंता का विषय हो सकता है, लेकिन इसके पीछे कारण केवल असंतोष नहीं, बल्कि अवसरों की तलाश और कानूनी-प्रशासनिक जरूरतें भी हैं। भारत सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अब यह होगी कि कैसे देश में रहने वाले युवाओं के लिए विश्वस्तरीय अवसर तैयार किए जाएं, ताकि "ब्रेन ड्रेन" की यह प्रवृत्ति धीमी हो और प्रतिभा देश के भीतर ही बने, बढ़े और फलें-फूलें।
आखिरी बात, यह आंकड़ा देश के विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता को भी उजागर करता है।