एसएमएस ट्रॉमा सेंटर आग जांच रिपोर्ट एक महीने बाद भी नहीं, सुरक्षा मानक पर उठ रहे गंभीर सवाल

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Posted On:Friday, November 7, 2025

जयपुर न्यूज डेस्क: प्रदेश के सबसे बड़े एसएमएस अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में आईसीयू आग की घटना को अब एक महीना हो गया है, लेकिन जांच कमेटी की रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं हुई है। 5 अक्टूबर की रात सेकंड फ्लोर पर स्थित आईसीयू में लगी भीषण आग में छह मरीजों की मौत हो गई थी। आग के बाद कई लापरवाहियों की बातें सामने आईं, लेकिन जांच की गति बेहद धीमी रही।

जांच में खुलासा हुआ कि 2015 में बने इस आईसीयू में नेशनल बिल्डिंग कोड और एनएबीएच गाइडलाइंस का पालन नहीं किया गया था। प्रवेश और निकास के लिए सिर्फ एक ही गेट था, जिससे आग लगने पर मरीजों को बाहर निकालना मुश्किल हुआ। आईसीयू में उचित दूरी नहीं थी, पार्टिशन से जगह और तंग हो गई थी। वायरिंग की नियमित मेंटेनेंस नहीं हुई और फॉल्स सीलिंग में प्लास्टिक शील्ड लगी थी, जिससे आग फैलने पर जहरीली गैस बनी। आग का कारण शॉर्ट सर्किट बताया गया। स्टोर रूम से आग शुरू हुई और फायर फाइटिंग सिस्टम भी काम नहीं आया।

भारत सरकार की हेल्थकेयर फायर सेफ्टी गाइडलाइन के अनुसार अस्पतालों में फायर डिटेक्शन सिस्टम, अलार्म, प्रशिक्षित सेफ्टी ऑफिसर और आग पकड़ने वाले मटेरियल पर रोक होना जरूरी है। लेकिन एसएमएस ट्रॉमा सेंटर में ये सभी मानक अनुपालन में नहीं थे। इसके बाद पुराने आईसीयू और पास के सेमी आईसीयू को मिलाकर नया आईसीयू बनाने का निर्णय लिया गया है। नए आईसीयू में बैड्स कम होंगे और नेशनल बिल्डिंग कोड तथा एनएबीएच मानकों का पालन किया जाएगा।

ट्रोमा सेंटर के नोडल अधिकारी डॉ. बी.एल. कुमावत ने बताया कि नए आईसीयू का लेआउट मानक के अनुसार तैयार किया जा रहा है। वहीं, एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. दीपक माहेश्वरी ने कहा कि 2015 में बनी आईसीयू के समय की स्थिति पर वे टिप्पणी नहीं कर सकते। चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने 6 अक्टूबर को जांच कमेटी गठित की थी और रिपोर्ट एक सप्ताह में देने का निर्देश दिया था। 29 अक्टूबर को उन्होंने इसे चार-पांच दिन में सार्वजनिक करने और दोषियों पर कार्रवाई करने की बात कही थी, लेकिन अब तक रिपोर्ट सामने नहीं आई।

यह पहली बार नहीं है जब एसएमएस में जांच रिपोर्ट अटकी हो। मई में गलत ब्लड चढ़ाने से हुई गर्भवती महिला की मौत का मामला भी अभी तक रिपोर्टहीन है। दोनों घटनाओं से प्रशासनिक सुस्ती और अस्पताल में सुरक्षा मानकों की अनदेखी उजागर होती है। सवाल यह है कि आखिर जिम्मेदारों पर कार्रवाई कब होगी और प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल में सुरक्षा मानक केवल कागजों तक ही सीमित रहेंगे या हकीकत में लागू होंगे।


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