31 अक्टूबर का दिन भारतीय इतिहास के पन्नों में राष्ट्रीय एकता के जश्न और गहरे राजनीतिक बलिदान के निशान के रूप में दर्ज है। यह तारीख दो विपरीत ध्रुवों पर खड़ी है: एक ओर लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म, जिनकी विरासत देश के एकीकरण का प्रतीक है, और दूसरी ओर देश की चौथी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की दुखद हत्या, जिसने भारतीय राजनीति को झकझोर कर रख दिया था। हर साल, यह दिन राष्ट्र को उसकी मजबूत नींव और संभावित खतरों दोनों की याद दिलाता है।
राष्ट्रीय एकता के शिल्पकार: सरदार वल्लभभाई पटेल (जन्म 1875)
31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नाडियाड में जन्मे वल्लभभाई पटेल को उनकी जयंती पर पूरा देश 'राष्ट्रीय एकता दिवस' के रूप में मनाता है। उन्हें भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के रूप में याद किया जाता है, जिनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 565 से अधिक रियासतों को भारतीय संघ में विलय करना था।
एकीकरण की असाधारण गाथा
आज़ादी के बाद, भारत की भौगोलिक और राजनीतिक एकता सबसे बड़ी चुनौती थी। कई रियासतें स्वतंत्र रहने या पाकिस्तान में शामिल होने का विकल्प चुन रही थीं। ऐसे में, पटेल ने अपनी कूटनीतिक कुशलता, दृढ़ संकल्प और जहाँ ज़रूरी हुआ, वहाँ सैन्य हस्तक्षेप का सहारा लेकर इन रियासतों को एक राष्ट्र के ध्वज तले लाने में सफलता हासिल की।
'सरदार' की उपाधि: वल्लभभाई पटेल को यह उपाधि 1928 में बारडोली सत्याग्रह के सफल नेतृत्व के बाद वहाँ की महिलाओं द्वारा प्रदान की गई थी, जहाँ उन्होंने किसानों को ब्रिटिश सरकार की अन्यायपूर्ण कर वृद्धि के खिलाफ एकजुट किया था।
लौह पुरुष: लोहे जैसी इच्छाशक्ति और देश की अखंडता के प्रति उनके अडिग समर्पण के कारण ही उन्हें 'भारत के लौह पुरुष' की उपाधि मिली। उनका योगदान इतना महत्वपूर्ण था कि उन्हें 'भारत का बिस्मार्क' भी कहा जाता है, जिन्होंने जर्मनी के एकीकरण के बिस्मार्क के प्रयासों के समान ही भारत का एकीकरण किया।
'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी': एकता नगर में उनकी 182 मीटर ऊंची प्रतिमा 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' आज उनकी विरासत और राष्ट्रीय एकता के प्रति उनके स्थायी योगदान का प्रतीक है।
राजनीतिक त्रासदी: इंदिरा गांधी की हत्या (निधन 1984)
31 अक्टूबर का दिन भारतीय और विश्व इतिहास में कई विशाल व्यक्तित्वों के जन्म और महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं के लिए जाना जाता है। यह तारीख एक ओर जहाँ राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में देश के एकीकरण के शिल्पकार को श्रद्धांजलि देती है, वहीं दूसरी ओर देश की एक सशक्त प्रधानमंत्री की दुखद हत्या का काला अध्याय भी समेटे हुए है।
ऑपरेशन ब्लू स्टार और प्रतिशोध
उनकी हत्या के पीछे मुख्य कारण जून 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में किए गए 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' का आदेश देना था। यह सैन्य कार्रवाई खालिस्तानी अलगाववादी नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों को मंदिर परिसर से निकालने के लिए की गई थी, जिसने सिख समुदाय की भावनाओं को गहरा आघात पहुँचाया था।
घटनाक्रम: सुबह 9:30 बजे, जब इंदिरा गांधी एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता को इंटरव्यू देने के लिए अपने घर से बाहर आईं, तब बेअंत सिंह ने उन पर अपनी रिवॉल्वर से गोली चलाई और सतवंत सिंह ने मशीनगन से कई राउंड फायर किए।
परिणाम: इस दुखद घटना के बाद देश भर में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे, विशेषकर दिल्ली में, जिसमें हजारों निर्दोष लोगों की जान गई और एक गहरा सामाजिक घाव बन गया। उनकी मृत्यु के बाद, उनके पुत्र राजीव गांधी ने देश के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला।
वैश्विक इतिहास के महत्वपूर्ण मोड़
31 अक्टूबर की तारीख विश्व इतिहास में भी कई दूरगामी परिवर्तनों की शुरुआत का दिन है:
प्रोटेस्टेंट सुधार (1517): जर्मन धर्मशास्त्री मार्टिन लूथर ने विटेनवर्ग चर्च के द्वार पर अपनी 95 आपत्तियाँ (95 Theses) चिपकाकर रोमन कैथोलिक चर्च की प्रथाओं पर सवाल उठाए। इस घटना को प्रोटेस्टेंट सुधार (Protestant Reformation) का आरंभ बिंदु माना जाता है, जिसने ईसाई धर्म को कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट संप्रदायों में विभाजित कर दिया और यूरोप के सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल दिया।
माउंट रशमोर का समापन (1941): दक्षिण डकोटा में अमेरिका के चार राष्ट्रपतियों जॉर्ज वॉशिंगटन, थॉमस जेफरसन, थियोडोर रूजवेल्ट और अब्राहम लिंकन के चेहरों वाली विशालकाय मूर्तिकला, माउंट रशमोर नेशनल मेमोरियल, का निर्माण कार्य पूरा हुआ।
स्वेज संकट (1956): स्वेज नहर संकट के दौरान, ब्रिटेन और फ्रांस ने मिस्र पर बमबारी शुरू कर दी थी, जो एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक संघर्ष था जिसने वैश्विक शक्तियों के संतुलन को प्रभावित किया।
अन्य प्रसिद्ध निधन: 31 अक्टूबर को भारत की प्रसिद्ध कवयित्री और उपन्यासकार अमृता प्रीतम (2005) और प्रसिद्ध संगीतकार सचिन देव बर्मन (1975) का भी निधन हुआ था।