फरवरी में पेश होने वाले आम बजट में अब करीब सवा महीने का समय शेष है। जैसे-जैसे बजट की तारीख नजदीक आ रही है, आर्थिक गलियारों में इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि सरकार विकास की रफ्तार को बनाए रखने और राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) को नियंत्रित करने के बीच कैसे संतुलन साधेगी। वैश्विक परामर्श फर्म ईवाई (EY) की हालिया रिपोर्ट संकेत देती है कि आगामी बजट का मुख्य केंद्र 'घरेलू मांग' को मजबूती देना होगा, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सुरक्षा कवच का काम करेगी।
घरेलू मांग को मजबूती देना अनिवार्य
ईवाई इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के कारण भारत का शुद्ध निर्यात (Net Export) निकट भविष्य में नकारात्मक रह सकता है। ऐसी स्थिति में भारत को अपनी जीडीपी वृद्धि के लिए पूरी तरह से घरेलू खपत और निवेश पर निर्भर रहना होगा।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि वित्त वर्ष 2026-27 का बजट भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की विकास-उन्मुख मौद्रिक नीति के साथ मिलकर अर्थव्यवस्था को अतिरिक्त प्रोत्साहन दे सकता है। यदि सरकार लक्षित राजकोषीय समर्थन (Targeted Fiscal Support) प्रदान करती है, तो इससे न केवल लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी, बल्कि उद्योगों में निजी निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा।
राजस्व और व्यय का गणित
बजट के सामने सबसे बड़ी चुनौती राजस्व जुटाने और खर्चों को प्रबंधित करने की है। ईवाई के मुख्य नीति सलाहकार डी. के. श्रीवास्तव का मानना है कि:
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टैक्स में कटौती की संभावना: मध्यम वर्ग को राहत देने के लिए आयकर (Income Tax) और जीएसटी (GST) दरों में संभावित कटौती पर विचार किया जा सकता है। हालांकि, इससे सरकारी खजाने पर दबाव आ सकता है।
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गैर-कर राजस्व का सहारा: सरकार इस राजस्व दबाव को कम करने के लिए गैर-कर स्रोतों (जैसे विनिवेश या लाभांश) और राजस्व व्यय में कटौती पर ध्यान केंद्रित कर सकती है।
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नए उपकर (Cess): तंबाकू उत्पादों पर उत्पाद शुल्क और राष्ट्रीय सुरक्षा व जन स्वास्थ्य उपकर जैसे नए उपायों से राजस्व बढ़ाने की कोशिश की जा रही है, जिन्हें संसद की मंजूरी पहले ही मिल चुकी है।
पूंजीगत व्यय और राजकोषीय घाटा
सरकार का पिछला रुख 'पूंजीगत व्यय' (Capital Expenditure) को बढ़ाने पर रहा है, जिससे बुनियादी ढांचे (इन्फ्रास्ट्रक्चर) का विकास हुआ है। आगामी बजट में भी उम्मीद है कि सरकार राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करते हुए बुनियादी ढांचे पर खर्च जारी रखेगी।
[Image showing the trend of India's Fiscal Deficit and Capital Expenditure over the last 5 years]
मध्यम अवधि में, वैश्विक आपूर्ति शृंखला (Supply Chain) की बाधाओं के कम होने और घरेलू निजी निवेश में तेजी आने से भारत की विकास दर को और मजबूती मिलने की संभावना है।
वृद्धि दर का अनुमान
आर्थिक विकास दर (GDP Growth Rate) को लेकर विभिन्न संस्थाओं के अपने-अपने आकलन हैं:
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RBI का अनुमान: भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि दर 7.3 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है।
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ईवाई का अनुमान: परामर्श फर्म का मानना है कि भारत औसतन 6.5 प्रतिशत की स्थिर वृद्धि दर बनाए रख सकता है।
निष्कर्ष: आगामी केंद्रीय बजट केवल एक वित्तीय लेखा-जोखा नहीं होगा, बल्कि यह भारत को वैश्विक मंदी के खतरों से बचाने और घरेलू बाजार को आत्मनिर्भर बनाने का एक रोडमैप होगा। यदि सरकार मध्यम वर्ग को टैक्स में राहत देकर घरेलू मांग को बढ़ा पाती है, तो यह विकास दर को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकता है।