भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर होता जा रहा है। शुक्रवार को घरेलू मुद्रा एक और ऐतिहासिक निचले स्तर पर बंद हुई। रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 90.41 पर बंद हुआ, जो अब तक का दूसरा रिकॉर्ड निचला स्तर है। शुरुआती कारोबार में, अमेरिका के साथ व्यापार समझौते में देरी के मुख्य कारण से, रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 90.55 के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुँच गया था।
बाजार के आँकड़े: रुपये की कमजोरी
आँकड़ों के मुताबिक, भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 90.31 के ऐतिहासिक निचले स्तर पर खुला। कारोबारी सत्र के दौरान रुपये में और कमजोरी आई और यह 90.55 के नए निचले स्तर पर पहुँच गया। हालाँकि, दोपहर के सत्र में इसमें मामूली सुधार देखने को मिला और यह 90.37 पर पहुँचा। लेकिन बाजार बंद होने तक रुपया 90.41 के नए ऐतिहासिक निचले स्तर पर बंद हुआ।
डॉलर के मुकाबले रुपये में इस हफ्ते 0.50 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। मौजूदा साल में, डॉलर के मुकाबले रुपये में करीब 6 फीसदी की गिरावट आई है। यह तीन साल के बाद रुपये में डॉलर के मुकाबले सबसे बड़ी गिरावट है। नतीजतन, रुपया मौजूदा साल में डॉलर के मुकाबले एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली करेंसी बन चुका है।
रुपये की कमजोरी के तीन 'दुश्मन'
रुपये में इस लगातार गिरावट के पीछे तीन प्रमुख कारक जिम्मेदार माने जा रहे हैं:
1. अमेरिका के साथ व्यापार समझौते में देरी
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में द्विपक्षीय सहयोग पर बातचीत की, लेकिन टैरिफ में किसी भी तरह की राहत का कोई ठोस संकेत नहीं मिला। विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका द्वारा टैरिफ लगाए जाने के बाद से ही रुपये पर दबाव बना हुआ है, और इसका असर साल के अंत तक स्पष्ट रूप से दिखने लगेगा। बाजार अमेरिका के साथ व्यापार समझौते की अंतिम तिथि का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। विश्लेषकों का मानना है कि रुपये की मजबूती अब इस बात पर निर्भर करेगी कि भारत सरकार अमेरिका के साथ अंतिम व्यापार समझौते की घोषणा कब करती है।
2. विदेशी निवेशकों की मुनाफावसूली
विदेशी निवेशकों (FIIs) द्वारा घरेलू शेयरों की लगातार बिक्री से भी घरेलू करेंसी पर दबाव बढ़ रहा है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, विदेशी निवेशकों ने इस वर्ष भारतीय शेयर बाजार से $18 बिलियन मूल्य के शेयर निकाले हैं। मौजूदा महीने की बात करें तो करीब ₹18,000 करोड़ की बिकवाली हो चुकी है। दिसंबर मौजूदा साल का आठवाँ महीना है जब विदेशी निवेशक लगातार बिकवाली कर रहे हैं। बीते 15 महीनों में से 10 महीनों में विदेशी निवेशकों ने शेयर बाजार से अपना पैसा निकाला है, और इसी दौरान डॉलर के मुकाबले में रुपया करीब 8 फीसदी तक टूट चुका है।
3. डॉलर की जमकर खरीदारी
स्थानीय कंपनियाँ अपने साल के अंत के भुगतान पूरे करने के लिए डॉलर की भारी खरीद कर रही हैं, जिससे मुद्रा और कमजोर हो गई है। व्यापारियों का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने हस्तक्षेप किया है, लेकिन केंद्रीय बैंक ने करेंसी के लिए कोई विशिष्ट लक्ष्य लेवल निर्धारित नहीं किया है। हालाँकि, 16 दिसंबर को आरबीआई करेंसी स्वैपिंग के तहत बैंकों से डॉलर खरीद रहा है और बैंकिंग सिस्टम को कई हजार करोड़ रुपये दे रहा है, जिससे रुपये को मामूली सपोर्ट मिल सकता है, लेकिन यह सपोर्ट सीमित रहने की संभावना है।