गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण को लेकर भैरोघाटी–हर्षिल क्षेत्र इन दिनों भारी तनाव और बहस का केंद्र बना हुआ है। प्रस्तावित सड़क विस्तार के तहत हजारों की संख्या में हिमालयी देवदार के पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलने की आशंका से स्थानीय लोग, पर्यावरण कार्यकर्ता और सामाजिक संगठन एकजुट होकर विरोध के स्वर बुलंद कर रहे हैं। इसी क्रम में ‘देवदार बचाओ अभियान’ शुरू किया गया है, जो अब जनआंदोलन का रूप लेता दिखाई दे रहा है। इस अभियान में शामिल लोग देवदार के पेड़ों पर रक्षा-सूत्र बांधकर उन्हें कटने से बचाने का संदेश दे रहे हैं, जो न सिर्फ सांस्कृतिक भावना का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति के प्रति सम्मान और संरक्षा का भी प्रतीक माना जा रहा है।
हर्षिल घाटी और इससे सटे ऊंचाई वाले इलाके सदियों से देवदार वनों के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। यहां की प्राकृतिक जलवायु, जलस्रोत और जैव-विविधता इन घने देवदार वनों पर टिकी है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि सड़क विकास का विरोध उनका उद्देश्य नहीं है, बल्कि वे चाहते हैं कि विकास प्रकृति के संतुलन के साथ किया जाए। ग्रामीणों का स्पष्ट मत है कि देवदार के इतने बड़े पैमाने पर कटान से न केवल पर्वतीय ढलानों की मिट्टी खिसकने की घटनाएं बढ़ेंगी, बल्कि क्षेत्र में पहले से संवेदनशील जलस्रोत भी प्रभावित होंगे। देवदार वृक्ष गहरी जड़ें जमाकर मिट्टी को बांधे रखते हैं और जल संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे में, यदि इन्हें हटाया गया, तो आने वाले वर्षों में गंगोत्री धाम की ओर जाने वाले मार्ग पर भूस्खलन की घटनाओं में इजाफा होना तय माना जा रहा है।
स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस पूरे क्षेत्र की पारिस्थितिकी पहले से ही जलवायु परिवर्तन और तीर्थ यात्री दबाव की वजह से चुनौती झेल रही है। वे प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि सड़क चौड़ीकरण के लिए वैकल्पिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाए, जैसे टनल निर्माण, सोलर प्रोटेक्शन बैरियर, पहाड़ी स्टेबलाइजेशन तकनीक और बैली ब्रिज मॉडल, ताकि पेड़ों की कटाई के बिना भी यातायात सुचारू बनाया जा सके। प्रदर्शनकारियों ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि जनसुनवाई किए बिना और स्थानीय समुदाय की चिंता सुने बिना परियोजना को आगे बढ़ाया गया, तो वे व्यापक पैमाने पर उग्र विरोध करेंगे।
दूसरी ओर, वन विभाग और निर्माण एजेंसियां इस बात पर जोर दे रही हैं कि सड़क का चौड़ीकरण यातायात सुरक्षा के लिए आवश्यक है। उनका कहना है कि तीर्थ सीजन और पर्यटन सीजन में इस मार्ग पर वाहनों का दबाव कई गुना बढ़ जाता है, जिससे दुर्घटनाएं और जाम आम बात हो जाती है। हालांकि उन्होंने यह आश्वासन भी दिया है कि पर्यावरणीय मानकों का पालन करते हुए और नुकसान को न्यूनतम रखते हुए ही कार्य आगे बढ़ाया जाएगा।
फिलहाल, देवदार बचाओ अभियान ने स्थानीय समुदाय में पर्यावरणीय चेतना को नई दिशा दी है। इस आंदोलन ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि विकास और प्रकृति संरक्षण के बीच संतुलन किस प्रकार स्थापित किया जाए। गंगोत्री धाम की पवित्रता, हिमालय के देवदार वनों का अस्तित्व और पर्वतीय जीवन की सुरक्षा केवल तकनीकी विकास से नहीं, बल्कि संवेदनशील निर्णयों और प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी के सामूहिक भाव से ही सुरक्षित रह सकती है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रशासन, पर्यावरण विशेषज्ञों और जनता के बीच संवाद किस दिशा में आगे बढ़ता है और क्या हिमालय के देवदार आने वाले समय में सुरक्षित रह पाते हैं या नहीं।