जयपुर न्यूज डेस्क: जयपुर की सुबह उस दिन खामोश नहीं रही, बल्कि गोलियों की गूंज ने पूरे इलाके का सन्नाटा चीर दिया। इंस्पेक्टर शंकर लाल बलाई, जो रोज़ की तरह मॉर्निंग वॉक के बाद घर लौट रहे थे, नहीं जानते थे कि गेट पर उनकी मौत इंतज़ार कर रही है। घर के बाहर छिपा बैठा था उनका ही साला, RAC जवान अजय कटारिया, हाथ में सरकारी राइफल और दिमाग में बदले का तूफान।
जैसे ही शंकर लाल गेट पर पहुंचे, अजय ने सात गोलियां दाग दीं। हर गोली मानो उसके दिल के जख्म की आवाज थी। इंस्पेक्टर मौके पर ही गिर पड़े और उनकी जिंदगी की किताब वहीं बंद हो गई। वारदात के बाद अजय भागा नहीं, बल्कि सीधे थाने पहुंचा, राइफल पुलिस को सौंपी और ठंडे लहजे में कहा, "मार दिया मैंने।" पुलिस भी हैरान थी—आरोपी वर्दी में था और बयान में एक रिश्ते की कड़वी सच्चाई छिपी थी।
दरअसल, अजय की सगाई हाल ही में हुई थी, जो शंकर लाल ने ही तय करवाई थी। बाद में अजय को पता चला कि युवती का किसी और से प्रेम संबंध है। विवाद बढ़ा, रिश्ता टूटा और अजय के दिल में ये धारणा बैठ गई कि उसकी बर्बादी का जिम्मेदार उसका जीजा ही है। जब उसने युवती से बात करनी चाही, तो जवाब मिला—"शंकर लाल भाईसाहब ने मिलने से मना किया है।" यही बात उसके भीतर ज़हर की तरह फैल गई और आखिरकार उसने कातिल बनने का रास्ता चुन लिया।
पुलिस जांच में साफ है कि यह कोई आवेश में किया गया अपराध नहीं था, बल्कि सोच-समझकर रचा गया प्लान था। अब अजय जेल में है और शंकर लाल के परिवार के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे। यह घटना एक कड़वा सवाल छोड़ जाती है—क्या कानून की वर्दी इंसान को सिर्फ बाहर से मजबूत बनाती है, लेकिन अंदर के ज़हर को रोक नहीं पाती?