गोवा की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में श्री लैराई यात्रा, जिसे शिरगांव जात्रा के नाम से भी जाना जाता है, एक विशेष स्थान रखती है। यह सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था, सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक विरासत की जीवंत मिसाल है। हर साल अप्रैल या मई में उत्तर गोवा के शिरगांव गांव में हजारों श्रद्धालु इस यात्रा में भाग लेने आते हैं, जिसमें अग्निदिव्य यानी जलते कोयलों पर नंगे पांव चलने की चुनौतीपूर्ण रस्म विशेष आकर्षण का केंद्र होती है।
हाल ही में इस आयोजन के दौरान भगदड़ की दुखद घटना ने पूरे राज्य का ध्यान इसकी सुरक्षा तैयारियों की ओर खींचा, लेकिन इसके साथ ही इस पर्व की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्ता पर भी एक बार फिर से चर्चा शुरू हो गई है।
लैराई देवी की महिमा और मंदिर का इतिहास
श्री लैराई देवी को कोंकणी भाषा में "लैराई माँ" कहा जाता है, जिन्हें शक्ति की रूपिणी और रक्षक देवी के रूप में पूजा जाता है। स्थानीय जनश्रुति के अनुसार, लैराई देवी को मापुसा की मिलाग्रेस सायबिन (वर्जिन मैरी) की बहन माना जाता है, जो गोवा की सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक समन्वय की भावना को दर्शाता है।
श्री लैराई मंदिर की स्थापत्य कला उत्तर भारतीय नागर शैली और दक्षिण भारतीय द्रविड़ शैली का मिश्रण है। मंदिर परिसर में देवी लैराई के अलावा महामाया, संतेर, महादेव, रावलनाथ आदि के उपमंदिर भी हैं, जो इस स्थान को एक धार्मिक परिसर का रूप देते हैं।
अग्निदिव्य: श्रद्धा का अग्निपथ
इस जात्रा की सबसे चर्चित और रोमांचकारी परंपरा अग्निदिव्य है। इसमें हजारों की संख्या में धोंड (श्रद्धालु) जलते कोयलों पर नंगे पांव चलकर देवी को अपनी भक्ति और समर्पण अर्पित करते हैं। इस रस्म को पूरा करने से पहले ये धोंड 5 दिन का उपवास रखते हैं और मंदिर परिसर या अस्थायी झोपड़ियों में ही रहते हैं। वे रोजाना धोंडाची ताली (पवित्र झील) में स्नान कर शुद्धता का पालन करते हैं।
अग्निदिव्य, केवल शारीरिक साहस का प्रतीक नहीं, बल्कि मानसिक दृढ़ता, आत्मसंयम और देवी में अटूट आस्था का प्रतीक है।
इतिहास और परंपरा की जड़ें
श्री लैराई यात्रा का इतिहास कई सौ वर्षों पुराना है। कोंकण क्षेत्र में शक्ति उपासना की परंपरा बहुत गहरी रही है और लैराई देवी उस शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं जो भक्तों की रक्षा करती हैं, उन्हें साहस और विवेक देती हैं। यह जात्रा गोवा के पुराने समाजिक ढांचे को भी दर्शाती है जहाँ ग्राम देवता की पूजा और सामूहिक अनुष्ठान एकजुटता का प्रतीक थे।
यह पर्व देवी के बलिदान और प्रत्येक वर्ष के लिए नई ऊर्जा देने की अवधारणा पर आधारित है। अग्निदिव्य, इस परंपरा की अंतिम कसौटी के रूप में उभरती है।
धार्मिक समरसता और सामाजिक समन्वय
श्री लैराई यात्रा का एक अद्भुत पहलू यह है कि यह हिंदू और ईसाई समुदायों के आपसी सहयोग और धार्मिक सौहार्द का भी प्रतीक है। शिरगांव में जात्रा के दिन ही मापुसा में मिलाग्रेस सायबिन का उत्सव भी मनाया जाता है। दोनों समुदायों के लोग एक-दूसरे के उत्सव में भाग लेते हैं और एक गहरी सांस्कृतिक एकता का संदेश देते हैं।
यह परंपरा गोवा की संवेदनशील सामाजिक बनावट की सशक्त झलक पेश करती है, जहाँ धर्म बाधा नहीं, बल्कि संवाद का माध्यम बनता है।
हाल की भगदड़ की घटना और सबक
2024-25 की जात्रा में अचानक भगदड़ की स्थिति बन गई, जिसमें कई श्रद्धालु घायल हो गए। यह घटना बताती है कि जैसे-जैसे श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है, प्रशासन और मंदिर समिति को सुरक्षा उपायों को और अधिक गंभीरता से लेना होगा।
सुझाव:
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भीड़ प्रबंधन के लिए बैरिकेडिंग और CCTV अनिवार्य हों।
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कोयलों पर चलने की रस्म में स्वास्थ्य परीक्षण अनिवार्य हो।
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श्रद्धालुओं के लिए मेडिकल सहायता केंद्र और आपातकालीन निकासी मार्ग सुनिश्चित किए जाएं।
कैसे पहुंचे और क्या ध्यान रखें?
स्थान: श्री लैराई मंदिर, शिरगांव, बिचोलिम तालुका, नॉर्थ गोवा
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सावधानियां:
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सुबह जल्दी मंदिर जाएं ताकि भीड़ से बच सकें
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फोटोग्राफी से पहले अनुमति लें
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व्यक्तिगत सामान का ध्यान रखें
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अग्निदिव्य में भाग लेने से पहले मानसिक और शारीरिक रूप से पूरी तैयारी करें
निष्कर्ष: आस्था, संस्कृति और चेतावनी
श्री लैराई यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि गोवा की जीवंत सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। यह जात्रा हमें बताती है कि आस्था किस तरह से इंसान को अपनी सीमाओं से आगे ले जा सकती है, लेकिन साथ ही यह भी आवश्यक है कि ऐसे आयोजनों में व्यवस्था और सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।