जयपुर, 04 दिसंबर 2025। भाजपा राज्यसभा सांसद मदन राठौड़ ने संसद में राष्ट्रहित और देश के ऊर्जा भविष्य से जुड़े अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाते हुए भारत की रिफाइनिंग और बायोफ्यूल क्षमता के विस्तार पर विस्तृत जानकारी चाही। सांसद राठौड़ के सवाल के जवाब में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के राज्य मंत्री सुरेश गोपी ने बताया कि भारत की वर्तमान कुल रिफाइनिंग क्षमता 258.1 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष है, जिसे वर्ष 2030 तक बढ़ाकर 309.5 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष करने का अनुमान है।सार्वजनिक क्षेत्र की तेल रिफाइनरियों के पेट्रो—केमिकल इंटेंसिटी इंडेक्स को 4.1 से बढ़ाकर लगभग 9.3 तक ले जाने के प्रयास जारी हैं, जिससे भारत का पेट्रोकेमिकल उत्पादन और मूल्यवर्धन में तेजी आएगी। उन्होंने बताया कि भविष्य की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने हेतु पारंपरिक ईंधनों के साथ हरित ऊर्जा समाधानों को समेकित रूप से मजबूत किया जा रहा है। इसमें एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिसके तहत 20 प्रतिशत एथेनॉल मिश्रण हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है और इसके लिए विभिन्न फीडस्टॉक की उपलब्धता बढ़ाई जा रही है। यह कदम न केवल विदेशी तेल आयात पर निर्भरता कम करेगा बल्कि किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी सहायक होगा।
उन्होंने बताया कि बायोफ्यूल को प्रोत्साहित करने के लिए प्रधानमंत्री जैव ईंधन-वातावरण अनुकूल फसल अपशिष्ट निवारण (पीएम-जी1) जैसी योजनाओं को लागू किया जा रहा है, जिसके माध्यम से उन्नत बायोफ्यूल और किफायती विमानन ईंधन के उत्पादन को प्रोत्साहन मिल रहा है। इसके साथ ही संपीडित बायोगैस (सीबीजी) उत्पादन और उसके विपणन को बढ़ावा देने के लिए बड़े पैमाने पर कार्य चल रहा है। सरकार ने बायोमास एकत्रीकरण मशीनरी और डायरेक्ट पाइपलाइन अवसंरचना (डीपीआई) जैसी योजनाएँ भी शुरू की हैं। ताकि सीबीजी संयंत्रों को प्रभावी लॉजिस्टिक नेटवर्क के साथ जोड़ा जा सके। यह ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और आर्थिक गतिविधियों को नई गति प्रदान करने में सहायक सिद्ध हो रहा है। स्वच्छ ऊर्जा के एक और अहम क्षेत्र ग्रीन हाइड्रोजन में भारत ने राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के माध्यम से बड़ा लक्ष्य निर्धारित किया है। वर्ष 2030 तक 5 मिलियन मीट्रिक टन प्रतिवर्ष ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन की योजना भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम मानी जा रही है।
राज्यसभा सांसद मदन राठौड़ ने बताया कि स्वच्छ ईंधनों को अपनाने से स्टील, सीमेंट तथा परिवहन जैसे उच्च उत्सर्जन वाले क्षेत्रों में प्रदूषण के स्तर में बड़ी कमी आएगी। यह भारत को कम-कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने के साथ-साथ राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुरूप आगे बढ़ाने में एक निर्णायक भूमिका निभाएगा। इसी से ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण दोनों का संतुलन सुनिश्चित होगा। यह भी निश्चित है कि हरित ऊर्जा क्षेत्र में विस्तार से देश की अर्थव्यवस्था और युवाओं के लिए बड़े अवसर निर्मित होंगे।