Aaj ka Panchang 16 November 2025: सनातन धर्म के लोगों के लिए उत्पन्ना एकादशी व्रत का खास महत्व है, जिसका उपवास कल 15 नवंबर को रखा गया था. हालांकि, व्रत का पारण आज 16 नवंबर को होगा. आज दोपहर 01:10 मिनट से दोपहर 03:18 मिनट के बीच उत्पन्ना एकादशी व्रत का पारण करना शुभ रहेगा. इसके अलावा आज वृश्चिक संक्रांति भी है, जो सूर्य देव को समर्पित है. आज के दिन सूर्य देव की पूजा और उन्हें जल देने से पापों से मुक्ति मिलती है. साथ ही आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और व्यक्ति हर मुश्किल का डटकर सामना करता है. आइए अब जानते हैं 16 नवंबर 2025 के पंचांग के बारे में.
पंचांग- 16.11.2025
युगाब्द - 5126
संवत्सर - सिद्धार्थ
विक्रम संवत् -2082
शाक:- 1947
ऋतु __ हेमन्त
सूर्य __ दक्षिणायन
मास __ मार्गशीर्ष
पक्ष __ कृष्ण पक्ष
वार __ रविवार
तिथि _ द्वादशी 28:47:03
नक्षत्र हस्त 26:10:06*
योग प्रीति 31:21:53*
करण कौलव 15:39:37
करण तैतुल 28:47:03
चन्द्र राशि कन्या
सूर्य राशि - तुला till 13:37:31
सूर्य राशि - वृश्चिक from 13:37:31
🚩🌺 आज विशेष 🌺🚩 👉🏻 मार्गशीर्ष संक्रांति
🍁 अग्रिम पर्वोत्सव 🍁
👉🏻 प्रदोष व्रत
17/11/25 (सोमवार)
👉🏻 पितृ अमावस
19/11/25 (बुधवार)
👉🏻 देवकार्य अमावस
20/11/25 (गुरुवार)
👉🏻 श्री राम जानकी विवाह
25/11/25 (मंगलवार)
👉🏻 मोक्षदा एकादशी / गीता जयंती/ व्यतिपात पुण्यम्
01/12/25 (सोमवार)
👉🏻 व्यंजन द्वादशी / प्रदोष व्रत
02/12/25 (मंगलवार)
👉🏻 सत्य पूर्णिमा व्रत
04/12/25 (गुरुवार)
🕉️🚩 यतो धर्मस्ततो जयः🚩🕉इच्छाओं की झोली 🏵️
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एक राजमहल के द्वार पर बड़ी भीड़ लगी थी। किसी फ़क़ीर ने सम्राट से भिक्षा माँगी थी।
सम्राट ने उससे कहा- "जो भी चाहते हो, माँग लो"। दिन के प्रथम याचक की किसी भी इच्छा को पूरा करने का उसका नियम था।
उस फ़क़ीर ने अपने छोटे से भिक्षा-पात्र को आगे बढ़ाया और कहा- "बस, इसे स्वर्ण-मुद्राओं से भर दें"।
सम्राट ने सोचा, "इससे सरल बात और क्या हो सकती है ?" लेकिन जब उस भिक्षा-पात्र में स्वर्ण मुद्रायें डालीं गईं,तो ज्ञात हुआ कि उसे भरना असम्भव था क्योंकि वह तो जादुई था। जितनी अधिक मुद्रायें उसमें डाली गई,उतना ही अधिक वह ख़ाली होता चला गया।
सम्राट ने अपने सारे ख़ज़ाने ख़ाली करा दिये,लेकिन ख़ाली पात्र ख़ाली ही रहा।,
उसके पास जो कुछ भी था सभी उस पात्र में डाल दिया, लेकिन अद्भुत पात्र अभी भी ख़ाली का ख़ाली ही रहा।
तब उस सम्राट ने कहा,"हे भिक्षु,यह तुम्हारा पात्र साधारण नहीं हैं,उसे भरना मेरी सामर्थ्य के बाहर है।क्या मैं पूछ सकता हूँ,कि इस अद्भुत पात्र का रहस्य क्या है ?
वह फकीर ज़ौर हँसने लगा और बोला-"इस में कोई विशेष रहस्य नहीं हैं।मरघट गाट से निकल रहा था कि मनुष्य की खोपड़ी मिल गयी,उसे ही यह भिक्षा पात्र बना हैं।
मनुष्य की खोपड़ी कभी भरी नहीं,इसलिये यह भिक्षा पात्र कभी नहीं भरा जा सकता हैं।
धन से,पद से,ज्ञान से - किसी से भी भरो,यह ख़ाली ही रहेंगी,क्योंकि इन चीज़ों से भरनें के लिये यह बनी ही नहीं हैं।
मनुष्य की द्रव्य भूख अन्त हीन हैं और इसी मृग तृष्णा में दौड़ते-दौड़ते उसका ही अन्त हो जाता हैं ।
आत्म-ज्ञान के मूल सत्य को न जानने के कारण ही मनुष्य जितना पाता हैं, उतना ही दरिद्र होता जाता हैं ।
हृदय की इच्छायें कुछ भी पाकर शान्त नहीं होती हैं। "क्योंकि ह्रदय तो परमात्मा को पाने के लिये बना हैं।"
"परमात्मा के अतिरिक्त और कहीं सन्तुष्टि नहीं,उसके सिवाय और कुछ भी मनुष्य के हृदय को भरनें में असमर्थ हैं।"
अभिप्राय : ईच्छाएं कम कीजिए..मन की कोठरी ख़ाली और साफ़ कीजिए..तभी तो ईश्वर का वहां निवास होगा..!!
जय जय श्री सीताराम 👏
जय जय श्री ठाकुर जी की👏
(जानकारी अच्छी लगे तो अपने इष्ट मित्रों को जन हितार्थ अवश्य प्रेषित करें।)
ज्यो.पं.पवन भारद्वाज(मिश्रा) व्याकरणज्योतिषाचार्य
राज पंडित-श्री राधा गोपाल मंदिर (जयपुर)