द्रुक पंचांग के अनुसार, आज, 30 नवंबर, 2025 को मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि रात 9:29 बजे तक रहेगी। दशमी तिथि के बाद एकादशी तिथि शुरू होगी, जो कल सुबह तक रहेगी। इसके अलावा, सुबह-सुबह वज्र योग भी रहेगा। वज्र योग सुबह 7:12 बजे खत्म होगा, जिसके बाद सिद्धि योग शुरू होगा। सिद्धि योग कल सुबह तक रहेगा। हालांकि, इस दौरान रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 6:56 बजे शुरू होंगे, जो कल सुबह, 1 दिसंबर, 01:11 AM तक रहेंगे।
पंचांग- 30.11.2025
युगाब्द - 5126
संवत्सर - सिद्धार्थ
विक्रम संवत् -2082
शाक:- 1947
ऋतु __ हेमन्त
सूर्य __ दक्षिणायन
मास __ मार्गशीर्ष
पक्ष __ शुक्ल पक्ष
वार __ रविवार
तिथि - दशमी 21:28:40
नक्षत्र -उत्तरभाद्रपदा 25:10:00
योग वज्र 07:11:24
योग सिद्वि 28:21:04
करण तैतुल 10:27:09
करण गर 21:28:40
चन्द्र राशि - मीन
सूर्य राशि - वृश्चिक
🚩🌺 आज विशेष 🌺🚩
👉🏻 दशादित्य व्रत
🍁 अग्रिम पर्वोत्सव 🍁
👉🏻 मोक्षदा एकादशी / गीता जयंती/ व्यतिपात पुण्यम्
01/12/25 (सोमवार)
👉🏻 व्यंजन द्वादशी / प्रदोष व्रत
02/12/25 (मंगलवार)
👉🏻 सत्य पूर्णिमा व्रत
04/12/25 (गुरुवार)
🕉️🚩 यतो धर्मस्ततो जयः🚩🕉
📿 जन्म का योग और कर्म का रहस्य — एक कहानी📿
बहुत समय पहले की बात है, एक राजा अपनी जन्मपत्रिका देख रहा था। उसमें लिखा था कि उसका जन्म एक ऐसे विशेष मुहूर्त में हुआ है जिसमें राजा बनने का योग था। यह देखकर उसके मन में एक गहरा सवाल पैदा हुआ—“जब मेरा जन्म हुआ, ठीक उसी समय देश-विदेश में और भी कई बच्चे जन्मे होंगे, तो वे सब राजा क्यों नहीं बने?”
इस प्रश्न ने उसे बेचैन कर दिया। अगले ही दिन उसने अपनी राजसभा में सारे विद्वानों, पंडितों और ज्योतिषियों को बुलाया और यही सवाल उनके सामने रखा। सभी विद्वान स्तब्ध रह गए, किसी के पास उत्तर नहीं था। तभी एक वृद्ध ज्योतिषी खड़े हुए और बोले, “राजन, यह प्रश्न बहुत गूढ़ है, इसका उत्तर आपको इस दरबार में नहीं मिलेगा। उत्तर पाने के लिए आपको कोसों दूर, घने जंगल में एक महान तपस्वी के पास जाना होगा।”
राजा ने तुरंत यात्रा का निश्चय किया और अकेले ही घोड़े पर सवार होकर जंगल की ओर निकल पड़ा। कई दिनों की यात्रा के बाद वह एक घने जंगल के बीचों-बीच पहुँचा। वहां एक तपस्वी दिखे—वो आग की लपटों से अंगार निकालकर खा रहे थे। यह दृश्य देखकर राजा चौंक गया। उसने साहस करके उनसे प्रश्न किया।
“हे तपस्वी, मैं जानना चाहता हूं कि एक ही मुहूर्त में जन्म लेने वाले सभी लोग राजा क्यों नहीं बनते?”
तपस्वी क्रोधित हो उठे। बोले, “मूर्ख! मैं इसका उत्तर नहीं दूंगा। जाओ, आगे झरने के पास एक अन्य तपस्वी तपस्या में लीन हैं, वही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं।”
राजा आगे बढ़ा और झरने के पास पहुँचा। वहां एक और तपस्वी दिखे, जो अपना मांस नोच-नोच कर खा रहे थे। यह दृश्य और भी विचलित करने वाला था, लेकिन राजा का जिज्ञासु मन रुका नहीं। वह उनके पास गया और वही सवाल फिर दोहराया।
तपस्वी फिर क्रोधित हुए। बोले, “यह प्रश्न मैं नहीं, कोई और उत्तर देगा। बहुत दूर एक गाँव में जाओ, वहाँ एक पाँच वर्ष का बच्चा मरने वाला है, उसके प्राण जाने से पहले वही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देगा।”
राजा हैरान रह गया। पहले दो तपस्वी, अब एक मरता हुआ बच्चा! लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह घोड़े पर चढ़कर उस गांव की ओर निकल पड़ा। वहाँ पहुँचते ही उसने देखा कि पूरा परिवार बच्चे को घेरे बैठा है, वैद्य आए हुए हैं, सबका चेहरा उदासी से भरा है। बच्चा निढाल लेटा था, लेकिन उसकी आँखों में गजब की शांति थी।
राजा ने धीरे से बच्चे से पूछा, “बेटा, मुझे बताया गया है कि तुम ही मेरे प्रश्न का उत्तर दे सकते हो। कृपया बताओ—एक ही समय जन्म लेने वाले सब राजा क्यों नहीं बने?”
बच्चा मुस्कराया और बोला,
“राजा जी, आपने जिन दो तपस्वियों को देखा, और मैं—हम तीनों और आप, सात जन्म पहले भाई थे। हम चारों राजकुमार थे। एक बार जंगल में भटकते हुए भूखे-प्यासे थे। तभी हमें आटे की पोटली मिली, और रोटियां बनाईं। जैसे ही हम खाने बैठे, एक वृद्ध साधु भोजन माँगने आ पहुँचे।
हमारे सबसे बड़े भाई—जो अंगार खा रहे थे—बोले, ‘मैं क्यों दूं? मैं क्या खाऊंगा?’
दूसरे भाई—जो मांस खा रहे थे—बोले, ‘मैं क्यों दूं? क्या मैं अपना मांस खाऊंगा?’
मैंने भी मना कर दिया।
पर आप... आपने अपनी रोटी का आधा हिस्सा उन्हें दे दिया।
साधु असल में कोई आम इंसान नहीं, एक सिद्ध पुरुष थे। उन्होंने आपको आशीर्वाद दिया कि अगले जन्म में आप राजा बनेंगे। और हम तीनों अपने-अपने कर्म के फल भुगत रहे हैं।”
इतना कहकर बच्चा मुस्कुराया और अपने प्राण त्याग दिए।
राजा की आंखें भर आईं। अब वह समझ चुका था—सिर्फ जन्म का योग नहीं, बल्कि कर्म ही भविष्य की नींव रखता है।
जैसे किसी मोबाइल का लॉक गलत पासवर्ड से नहीं खुलता, वैसे ही गलत कर्मों से किस्मत का दरवाज़ा नहीं खुलता।
इसलिए, जो चाहे बनना है—उसके लिए सही कर्म, मेहनत और सेवा का मार्ग अपनाना ही होगा। यही सच्चा राजयोग है।
जय जय श्री सीताराम 👏
जय जय श्री ठाकुर जी की👏
(जानकारी अच्छी लगे तो अपने इष्ट मित्रों को जन हितार्थ अवश्य प्रेषित करें।)
ज्यो.पं.पवन भारद्वाज(मिश्रा) व्याकरणज्योतिषाचार्य
राज पंडित-श्री राधा गोपाल मंदिर (जयपुर)