आज 20 नवंबर 2025, गुरुवार है। आज मार्गशीर्ष (अगहन) माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि का विशेष धार्मिक संयोग बन रहा है। हिन्दू धर्म में आज की अमावस्या तिथि को पितरों के तर्पण, स्नान और दान के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
पंचांग- 20.11.2025
युगाब्द - 5126
संवत्सर - सिद्धार्थ
विक्रम संवत् -2082
शाक:- 1947
ऋतु __ हेमन्त
सूर्य __ दक्षिणायन
मास __ मार्गशीर्ष
पक्ष __ कृष्ण पक्ष
वार __ गुरुवार
तिथि - अमावस्या 12:16:08
नक्षत्र विशाखा 10:57:50
योग शोभन 09:51:49
करण नाग 12:16:08
करण किन्स्तुघ्न 25:31:55
चन्द्र राशि - वृश्चिक
सूर्य राशि - वृश्चिक
🚩🌺 आज विशेष 🌺🚩
👉🏻 देवकार्य अमावस
🍁 अग्रिम पर्वोत्सव 🍁
👉🏻 श्री राम जानकी विवाह
25/11/25 (मंगलवार)
👉🏻 मोक्षदा एकादशी / गीता जयंती/ व्यतिपात पुण्यम्
01/12/25 (सोमवार)
👉🏻 व्यंजन द्वादशी / प्रदोष व्रत
02/12/25 (मंगलवार)
👉🏻 सत्य पूर्णिमा व्रत
04/12/25 (गुरुवार)
🕉️🚩 यतो धर्मस्ततो जयः🚩🕉
(((( सारी जिम्मेदारी भगवान को सोंप दें ))))
एक महात्मा थे। जीवन भर उन्होंने भजन ही किया था। उनकी कुटिया के सामने एक तालाब था।
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जब उनका शरीर छूटने का समय आया तो देखा कि एक बगुला मछली मार रहा है। उन्होंने बगुले को उड़ा दिया। इधर उनका शरीर छूटा तो नरक गये।
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उनके चेले को स्वप्न में दिखायी पड़ा; वे कह रहे थे- "बेटा ! हमने जीवन भर कोई पाप नहीं किया, केवल बगुला उड़ा देने मात्र से नरक जाना पड़ा। तुम सावधान रहना।"
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जब शिष्य का भी शरीर छूटने का समय आया तो वही दृश्य पुनः आया। बगुला मछली पकड़ रहा था।
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गुरु का निर्देश मानकर उसने बगुले को नहीं उड़ाया। मरने पर वह भी नरक जाने लगा तो गुरुभाई को आकाशवाणी मिली कि गुरुजी ने बगुला उड़ाया था इसलिए नरक गये। हमने नहीं उड़ाया इसलिए नरक में जा रहे हैं। तुम बचना!
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गुरुभाई का शरीर छूटने का समय आया तो संयोग से पुनः बगुला मछली मारता दिखाई पड़ा।
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गुरुभाई ने भगवान् को प्रणाम कर कहा कि "भगवन् ! आप ही मछली में हो और आप ही बगुले में भी। हमें नहीं मालूम कि क्या झूठ है ? क्या सच है ? कौन पाप है, कौन पुण्य ? आप अपनी व्यवस्था देखें। मुझे तो आपके चिन्तन की डोरी से प्रयोजन है।"
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वह शरीर छूटने पर प्रभु के धाम गया।
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नारद जी ने भगवान से पूछा, "भगवन् ! अन्ततः वे नरक क्यों गये ? महात्मा जी ने बगुला उड़ाकर कोई पाप तो नहीं किया ?"
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उन्होंने बताया, "नारद ! उस दिन बगुले का भोजन वही था। उन्होंने उसे उड़ा दिया। भूख से छटपटाकर बगुला मर गया अतः पाप हुआ, इसलिए नरक गये।"
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नारद ने पूछा, "दूसरे ने तो नहीं उड़ाया, वह क्यों नरक गया ?"
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बोले, "उस दिन बगुले का पेट भरा था। वह विनोदवश मछली पकड़ रहा था, उसे उड़ा देना चाहिए था। शिष्य से भूल हुई, इसी पाप से वह नरक गया।"
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नारद ने पूछा, "और तीसरा ?"
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भगवान् ने कहा, "तीसरा अपने भजन में लगा रह गया, सारी जिम्मेदारी हमारे ऊपर सौंप दी। जैसी होनी थी, वह हुई; किन्तु मुझसे सम्बन्ध जोड़े रह जाने के कारण, मेरे ही चिन्तन के प्रभाव से वह मेरे धाम को प्राप्त हुआ।"
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अतः- पाप-पुण्य की चिन्ता में समय को न गँवाकर जो निरन्तर चिन्तन में लगा रहता है, वह पा जाता है।
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जितने समय हमारा मन भगवान् के नाम, रूप, लीला, गुण, धाम और उनके संतों में रहता है केवल उतने समय ही हम पापमुक्त रहते हैं।
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भगवान कृष्ण कहते हैं-
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"यज्ञार्थात्कर्मणोsन्यत्र लोकोsयं कर्मबन्धन:''
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जो कर्म यज्ञ के लिए नहीं, बल्कि स्वार्थ या आसक्ति के लिए किए जाते हैं, वे कर्मों के बंधन का कारण बनते हैं।
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यज्ञ के अतिरिक्त जो कुछ भी किया जाता है वह इसी लोक में बाँधकर रखने वाला है, जिसमें खाना-पीना सभी कुछ आ जाता है।
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पाप, पुण्य दोनों बन्धनकारी हैं, इन दोनों को छोड़कर जो भक्ति वाला कर्म है अर्थात् मन को निरंतर भगवान में रखें तो पाप, पुण्य दोनों भगवान को अर्पित हो जाएंगे।
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भगवान केवल मन की क्रिया ही नोट करेंगे, इसका मन तो मुझ में था, इसने कुछ किया ही नहीं। यह भक्ति ही भव बंधन काटने वाली है।
जय जय श्री सीताराम 👏
जय जय श्री ठाकुर जी की👏
(जानकारी अच्छी लगे तो अपने इष्ट मित्रों को जन हितार्थ अवश्य प्रेषित करें।)
ज्यो.पं.पवन भारद्वाज(मिश्रा) व्याकरणज्योतिषाचार्य
राज पंडित-श्री राधा गोपाल मंदिर (जयपुर)